शेर और गीदड़ !

शेर और गीदड़ !

एक बार एक व्यक्ति था. वह किसी काम से अपने गाँव से शहर कि और जा रहा था. गाँव से शहर के रास्ते में एक जंगल पड़ता था. जब वह उस जंगल में से गुजर रहा था उसे प्यास लगी तो वह पास ही जंगल में बहने वाली नदी की तरफ गया उसने पानी पिया और पानी पीने के बाद वापस लोटने लगा की उसने देखा वहीं नदी के किनारे एक गीदड़ बैठा था जो शायद चल फिर सकने के काबिल नहीं था यह देख उसे बड़ा अचरज हुआ की ये चल नहीं सकता तो फिर यह जीवित कैसे है. तभी अचानक उसे एक शेर की जोरदार दहाड़ सुनाई दी वो व्यक्ति एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गया और इंतजार करने लगा, तभी वहां शेर आया जिसने एक ताजा शिकार मुंह में दबोचा हुआ था. वह सब ध्यान से देखता रहा शेर शायद अपना पेट भर चूका था.

इसलिए उसने उस शिकार को उस गीदड़ के सामने डाल दिया और चला गया. वह व्यक्ति यह सब ध्यान से देख रहा था; उसने सोचा की परमात्मा की लीला अपरंपार है वो सब के लिए व्यवस्था करता है. तभी उसके मन में विचार आया की जब भगवान इस लाचार गीदड़ की मदद कर सकते है तो मेरी भी करेंगे . भगवान में गहरी आस्था थी इसलिए वो वहीं नदी किनारे एक ऊँची चट्टान पर बैठ गया और भगवान की भक्ति करने लगा एक दिन बिता, फिर दो दिन बीते, लेकिन कोई नहीं आया. उसकी हालत अब कमजोर होने लगी फिर भी हट पकड़ लिया की भगवान मेरी मदद अवश्य करेंगे. समय बिता और वह व्यक्ति मर गया. मरने के बाद सीधे भगवान के पास पहुंचा और भगवान से कहने लगा.

है! भगवन मैंने देखा था अपनी आँखों के सामने जब आप ने एक लाचार गीदड़ की सहायता की थी. मैंने आपकी जीवन भर सेवा की लेकिन आपने मेरी मदद नहीं की.
तब भगवान मुस्कराए और कहने लगे तुम्हें क्या लगता है जब तुम जंगल में से जा रहे थे तब अपनी मर्जी से नदी पर गए थे और यह सब कुछ देखा था.
“नहीं तुझे प्यास भी मैंने लगाईं थी और तुझे नदी पर भी मैंने ही भेजा था; लेकिन अफसोस इस बात का की मैंने तुझे शेर बनने के लिए जंगल में भेजा था लेकिन तू गीदड़ बनकर आ गया”.

Moral: - मित्रों इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जीवन ऐसे कई मौके आते है जब भगवान हमें हमारे वास्तविक रूप को पहचाने के लिए मौके देते है लेकिन यह हमारे उपर निर्भर करता है कि हम उसे किस रूप में ग्रहण कर रहे है. हम शेर बनकर लाचार और दीन व्यक्तियों की मदद करे या फिर सब कुछ होते हुए भी गीदड़ बन जाये. वह लाचार था क्योंकि वह बेसहारा था लेकिन आप नहीं. आप में वह काबिलीयत है की आप अपना जीवन अच्छा बनाकर उन लोगों को मदद कर सकते है जो हालात की वजह से बेबस जीवन जी रहे है. मित्रों आखिर में यही कहूँगा कि आप गीदड़ नहीं शेर बनो!  शेर !

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-Sagar Singh Panwar

Note: - आपके साथ कि गई ये प्रेरणात्मक कहानी (inspirational story) मेरी स्वयं कि कृति नहीं है, मैंने ये कहानी बहुत बार पढ़ी है और सुनी है और मैंने यहाँ पर केवल इसका हिन्दी रूपांतरण प्रस्तुत किया है.

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